मजीठिया आयोगाने वृत्तपत्रांकडून मागविला पत्रकारांच्या वेतनाचा तपशील...


पत्रकारांसाठी खुशखबर आहे ती म्हणजे, राज्य सरकारने जिल्ह्यातील सर्व माहिती कार्यालये आणि कामगार आयुक्त कार्यालयांना कामाला लावले आहे. वृत्तपत्र मालकांचा दबाव आता झुगारला गेला आहे. नव्या वर्षात, २०१२ मध्ये नवा आयोग लागू होण्याची दाट शक्यता आहे. जानेवारी २०१३ मध्ये वृत्तपत्र मालकांनी अडवून ठेवलेल्या मजीठीया वेतन आयोगाच्या  अंमलबजावणीबाबतच्या याचिकेवर अंतिम सुनावणी सुरू होईल. तत्पूर्वी सध्या प्रत्येक वृत्तपत्र आपल्या पत्रकारांना किती वेतन देत आहे, याची माहिती कामगार आयुक्तालयाकडून घेतली जात आहे. देशभरातून अशी माहिती गोळा केली जात आहे.
 (सोबत राज्यातील कामागार आयुक्तांचे वृत्त्तपत्र संपादकांना पत्र इमेजारुपात जोडले आहे.) 

 
 
महागाई वाढली, सर्वांचे वेतन वाढले, पत्रकार आणि मीडियाशी संबंधित व्यक्तींचे वेतन मात्र पूर्वीइतकेच राहिले आहे. पत्रकारांच्या वेतनवृद्धीसंबंधी मजीठिया वेतन बोर्डाची नियुक्ती तीन वर्षांपूर्वी सरकारने केली. बोर्डाने आपल्या शिफारसींचा अहवाल ३१ डिसेंबर २०१० रोजी सरकारला सादर केला. मात्र, मजीठिया वेतन बोर्डाने पत्रकारांच्या वेतनाबाबत सुचवलेल्या शिफारसी  21 महिने उलटून गेल्यानंतरही अद्याप लागू झालेल्या नाहीत. वृत्तपत्र स्वातंत्र्याविषयी देशात सातत्याने चर्चा होत असते. हे स्वातंत्र्य अबाधित राखण्यासाठी मागणीचे गांभीर्य लक्षात घेऊन सरकारने जानेवारी २००८ पासून पूर्वलक्षी प्रभावाने या शिफारसी लागू कराव्यात.  गेल्यावर्षी मार्चमध्ये लोकसभेत हा विषय पुढे आला होता. काँग्रेस खासदार मनीष तिवारी यांनी याबाबत सरकारने स्पष्टीकरण करावे अशी मागणी केली होती सरकारची भूमिका नेहमीच बड्या वृत्तपत्र मालकांच्या सोयीचीच असते . काही मालकांनी तर थेट जाहिरात देउन आयोगाच्या शिफारशी चुकीच्या असल्याची भूमिका घेतली. ही मालक मंडळी कोर्टात गेली आणि आयोगाच्या शिफारशी लागू करण्यास बाधा आणली. हायकोर्टाने कुठलीही स्थगिती वैगेरे दिलेली नसतानाही केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्टाच्या निकालाची वाट पाहत आहे. सुप्रीम कोर्टात आता पुढील महिन्यातच फैसला होईल.
 


केंद्रीय मंत्रिमंडळाने मजीठीया आयोग लागू करण्यास ऑक्टोबर २०११ मध्ये  मजुरी दिली ती बातमी (पत्रकारांचा नेमका काय फायदा/लाभ होईल )- 

 

केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने आज समाचार पत्रों एवं संवाद एजेंसियों के पत्रकार एवं गैर पत्रकार कर्मचारियों के वेतनमान में संशोधन संबंधी मजीठिया वेतनबोर्ड की सिफारिशों को मंजूरी दे दी.
 

संशोधित वेतनमान एक जुलाई 2010 से लागू होगा जबकि मकान किराया भत्ता और परिवहन भत्ता सहित अन्य भत्ते अधिसूचना जारी होने के दिन से प्रभावी होंगे.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय का निर्णय किया गया. केन्द्रीय श्रम मंत्री मल्लिकाअर्जुन खड़गे और सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी ने बैठक के बाद संवाददाताओं से कहा कि इस निर्णय से देश भर के 40,000 से अधिक पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारी लाभान्वित होंगे. उन्होंने कहा कि फैसले की अधिसूचना शीघ्र जारी कर दी जायेगी.
संशोधित वेतनमान पुराने मूल वेतन और जून 2010 तक का मंहगाई भत्ता एवं 30 प्रतिशत अंतरिम राहत के योग पर आधारित होगा. अंतरिम राहत पहले से ही दी जा रही है.
खड़गे ने बताया कि अखबारों को उनके कुल कारोबार के आधार पर आठ श्रेणियों में और समाचार एजेंसियों को चार श्रेणियों में बांटा गया है. प्रथम चार श्रेणी वाले अखबारों के कर्मचारियों को 35 प्रतिशत की दर से और अंतिम चार श्रेणी के अखबार के कर्मचारियों को 20 प्रतिशत की दर से संशोधित वेतनमान मिलेगा. सभी भत्तों के आंकलन के लिए संशोधित मूल वेतन में परिवर्तनीय मद के वेतन : वेरियेबल पे: को जोड़ा जाना चाहिए.



खड़गे ने बताया कि इसी तरह समाचार ऐजेंसियों की प्रथम दो श्रेणियों और अंतिम दो श्रेणियों के लिए भी उपरोक्त मापदंड सुझाए गए हैं. उन्होंने बताया कि जिस अखबार का कुल कारोबार एक हजार करोड़ रूपये और उससे अधिक है उसे पहली श्रेणी में रखा गया है. इसी तरह 500 करोड़ रूपये और उससे अधिक कारोबार वाले को द्वितीय, 100 करोड़ और उससे अधिक लेकिन 500 करोड से कम वाले को तीसरी, 50 करोड़ रूपये लेकिन सौ करोड़ से कम वाले को चतुर्थ श्रेणी, 10 करोड़ लेकिन 50 करोड से कम कारोबर वाली पांचवीं श्रेणी, पांच करोड़ और उससे अधिक लेकिन दस करोड से कम को छठी श्रेणी और एक करोड़ से कम वाले को आठवीं श्रेणी में रखा गया है.
संवाद ऐजेंसियों के मामले में जिनका कारोबार 60 करोड़ और उससे ज्यादा है उसे प्रथम श्रेणी में रखा गया है जबकि 30 करोड़ से ज्यादा लेकिन 60 से कम को द्वितीय श्रेणी, दस करोड़ और उससे ज्यादा लेकिन 30 करोड़ से कम को तीसरी श्रेणी और दस करोड़ से कम वालों को चतुर्थ श्रेणी में रखा गया है.
खड़गे ने कहा कि मकान किराया भत्ता एक्स वाई और जेड श्रेणी के शहरों के लिए क्रमश: 30 प्रतिशत, 20 प्रतिशत और 10 प्रतिशत की दर से लागू होगा. इसी प्रकार परिवहन भत्ता इन तीन श्रेणी के शहरों के लिए क्रमश: 20 प्रतिशत, दस प्रतिशत और पांच प्रतिशत की दर से लागू होगा.
उन्होंने बताया कि प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अखबारों के कर्मचारियों के लिए रात्रि पाली भत्ता प्रति दिन सौ रुपया, तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के अखबारों के कर्मचारियों के लिए 75 रुपया और पांच से आठ श्रेणी के अखबारों के कर्मचारियों के लिए 50 रूपये देय होगा.
संवाद ऐजेंसियों के लिए प्रथम और द्वितीय श्रेणी के लिए सौ रूपया और तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के लिए 50 रूपया प्रति रात्रि पाली की दर से भत्ता देय होगा. प्रथम चार श्रेणी के अखबारों के कर्मचारियों के लिए एक हजार रूपये हार्डशीप भत्ता मिलेगा जबकि प्रथम दो श्रेणी के समाचार एजेंसियों के कर्मचारियों को 500 रूपये हार्डशीप भत्ता देय होगा.
इसी प्रकार प्रथम दो श्रेणी के अखबारों एवं समाचार एजेंसियों के कर्मचारियों के लिए एक हजार रूपये चिकित्सा भत्ता जबकि तीन और चार श्रेणी के अखबारों के कर्मचारियों को 500 रूपये चिकित्या भत्ता मिलेगा.
खड़गे ने कहा कि प्रस्तावों को अधिसूचना के लिए आज ही कानून मंत्रालय को भेजा जा रहा है. उन्होंने कहा कि वह कोशिश करेंगे कि अधिसूचना जल्द से जल्द जारी हो.
समाचार पत्रों और संवाद समितियों के पत्रकारों और गैर.पत्रकारों के वेतनमान में संशोधन के लिए मई 2007 में वेतनबोर्ड का गठन किया गया था. वेतनबोर्ड ने अपनी सिफारिशें पिछले साल 31 दिसंबर को सरकार को सौंप दी थी.
खड़गे ने एक सवाल के जबाव में कहा कि सरकार के फैसले के लागू होने में कोई रूकावट नहीं है क्योंकि इस पर उच्चतम न्यायालय का कोई स्थगनादेश नहीं है लेकिन उच्चतम न्यायलय का जो भी अंतिम निर्णय होगा वह दोनों पक्षों पर लागू होगा.
यह पूछे जाने पर कि क्या कर्मचारियों की सेवा निवृत्ति की उम्र सीमा में बढोत्तरी की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है, खड़गे ने कहा कि जो भी सुझाव कानून के तहत सुझाए गए हैं उन्हें स्वीकार किया गया है लेकिन कानून से इतर सिफारिशों को स्वीकार नहीं किया गया है.

मजीठिया वेजबोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों से पूछा, कितना देंगे कर्मचारियों को रकम

17 सितंबर की सुनवाई के आगे मजीठिया वेतन बोर्ड पर सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को भी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अखबार मालिकों को कई कड़े निर्देश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान अखबार मालिकों के वकीलों से कहा कि वे अपने प्रबंधन से पूछकर बताएं कि वे कर्मचारियों को वेतनबोर्ड की सिफारिशों के अनुरूप कितना रकम पत्रकारों और गैर पत्रकारों के हिस्से में देना चाहते हैं। उसके बाद कोर्ट यह तय करेगी कि कर्मचारियों को कितना पैसा देना है। कोर्ट ने इसके लिए 15 दिन का समय दिया है। अगली सुनवाई आठ अक्टूबर को होगी। आठ अक्टूबर को ही यह तय हो जाएगा कि आपके हिस्से में कितनी रकम आएगी। लेकिन आप इस बात से जरूर खुश हो सकते हैं कि यदि कोर्ट बीच का रास्ता भी निकालती है तो भी कुछ न कुछ रकम आपके हिस्से में तो आएगी ही पर पूरी सिफारिश के लिए आपको जनवरी तक इंतजार करना पड़ेगा, क्योंकि कोर्ट एक हफ्ते के अंदर लगातार सुनवाई करके यह तय करेगी कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू किया जाए या नहीं। पर इससे पहले ही आपको सिफारिशों के लाभ मिलने शुरू हो जाएंगे क्योंकि कोर्ट ने साफ शब्दों में अखबार मालिकों के वकीलों से कह दिया है कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कोई स्टे आर्डर नहीं दे रखा है इसलिए आप लोग इस सिफारिश पर अमल शुरू कर दीजिए। बेजबोर्ड पर सुनवाई न्यायमूर्ति अफताब आलम और रंजना देसाई की पीठ में हो रही है।
 
सुप्रीम कोर्ट से अखबारों ने कहा- अब और 'इंटरिम रिलीफ' दे पाना संभव नहीं

: मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों को मानने से किया साफ इंकार : सुप्रीम कोर्ट ने मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिशों के खिलाफ दायर याचिकाएं लंबित होने की अवधि के दौरान कोई अंतरिम व्यवस्था करने से इंकार कर दिया है। न्यायमूर्ति आफताब आलम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसनाई की खंडपीठ ने कहा कि वेतन बोर्ड की सिफारिशें लागू करने पर कोई स्टे नहीं है।
इससे पहले समाचार पत्रों के प्रबंधकों ने अपने कर्मचारियों को अंतरिम व्यवस्था के रूप में अतिरिक्त भुगतान के सवाल पर विचार करने से इंकार कर दिया। लेकिन जब विभिन्न ट्रेड यूनियनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंसनालविज ने कोर्ट से यह साफ करने का अनुरोध किया कि वेतन बोर्ड की सिफारिशें लागू करने पर किसी प्रकार को कोई रोक तो नहीं है इसपर कोर्ट ने कहा कि नहीं इस मामले पर कोई स्थागनादेश नहीं है। इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही कोर्ट ने अंतरिम व्यवस्था के बारे में समाचार पत्र संगठनों से पूछा। न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई के दौरान 21 सितंबर को इस संबंध में विचार का सुझाव दिना था।
 
इस पर एक समाचार पत्र समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरिमन ने कहा कि मैं विनम्रता से इसे अस्वीकार करता हूं।’ उन्होंने कहा कि पिछले 13 सालों में कर्मचारियों के वेतन में दो सौ से तीन सौ फीसद तक की वृद्धि दी गई है। उन्होंने यूनियनों के इस आरोप को भी गलत बताना कि पिछले वेतन बोर्ड की सिफारिशों के बाद उन्हें कुछ नहीं मिला है।
 
न्यायधीशों ने कहा कि सभी पक्षों को सुने बगैर कोई अंतरिम आदेश देना संभव नहीं है। अब वे इस मामले की आठ जनवरी से सुनवाई करेंगे। न्यायालय ने 21 सितंबर को सुनवाई के दौरान वेतन बोर्ड की सिफारिशों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के निपटारे के लिए आठ जनवरी से सुनवाई करने का निश्चय करते हुए कर्मचारियों को अंतरिम व्यवस्था के रूप में अतिरिक्त भुगतान करने पर विचार का सुझाव प्रबंधकों को दिया था। सरकार ने मजीठिया वेतन बोर्ड की सिफारिशों के बारे में 11 नवंबर, 2011 को अधिसूचना जारी की थी। कई समाचार पत्र समूहों ने बोर्ड की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है। इन सभी ने इस अधिसूचना पर रोक लगाने की मांग की है।
इस मामले की खबर द हिंदू अखबार में इस तरह छपी है........
 
No more interim relief possible, say newspapers
Newspaper managements on Monday informed the Supreme Court that it would not be possible to give any further interim relief other than the 30 per cent interim relief which was already being paid to journalists and non-journalist employees. Senior counsel Fali Nariman told a Bench of Justices Aftab Alam and Ranjana Desai, “Our answer to your suggestion [at the last hearing on September 21 to make some interim payment] is: ‘we politely decline’.”
Justice Alam again told Mr. Nariman, “You consider paying them something till we finally decide the matter.” Mr. Nariman said, “The problem is if we pay, then it will not be possible for us to recover from them.” Justice Alam said, “That we will take care of in our order.” Mr. Nariman, however, said, “At this stage whether they should receive anything more at all when the [Majithia] award is erroneous has to be decided. Even if the court was to pass some order on interim arrangement, “you will have to hear us.”
 
Appearing for ABP Pvt. Ltd., publishers of The Telegraph and other newspapers, Mr. Nariman reeled off statistics to drive home the point that in the last 14 years, the salary of journalists and non-journalists had increased by over 200 per cent.
 
Senior counsel for employees Colin Gonsalves and M.N. Krishnamani said, “We can also produce statistics [on] how we [employees] are affected.” Mr. Gonsalves said most of the journalists who were being paid more were on contract. “It will take at least 10 years for those under the wage board to reach that salary.” As the notification of the Majithia award had not been stayed, the managements should be directed to pay as per the award and whatever excess, if any, was paid could be adjusted against their Provident Fund or gratuity as they were still in service, Mr. Gonsalves suggested.
 
But Justice Alam told counsel: “We are not staying the notification. If somebody wants to implement it, let them do it. We can’t deny them [managements] an opportunity of hearing when they say even for some interim arrangement they should be heard before passing any order. You will have to wait till January 8, 2013, when we take up the matter for final disposal.”
 
Senior counsel K.K. Venugopal, appearing for the Indian Newspaper Society (INS), said the Centre was yet to file its counter though it had raised certain serious issues. Justice Alam made it clear that the case would proceed whether the Centre filed its reply or not. Besides ABP Ltd., Bennett Coleman and Co. Ltd., publishers of The Times of India and other newspapers, and the INS, had challenged the Majithia report and its subsequent notification.