'झा'की तानाशाही से भास्कर के कर्मचारी परेशान

औरंगाबाद (महाराष्ट्र) - 'नाम बड़े लक्षण खोटे' ऐसी स्थिति दैनिक भास्कर के औरंगाबाद संस्करण की हुई है। युनिट हेड एस.के.झा की मनमानी और तानाशाही से भास्कर के सभी कर्मचारी परेशान हैं। कई जिला प्रतिनिधियों ने झा की तानाशाही से काम करना बंद किया है।
 औरंगाबाद भास्कर की रिपोर्टर उज्वला साळुंके के साथ हुए अन्याय पर बेरक्याने आवाज उठाने के बाद अब बेरक्या के पास झा की नई नई शिकायतें आ रही हैं। झा किसी भी संवाददाता, उपसंपादक, जिला प्रतिनिधि को मनमानी करते हुए कभी भी हटाता है। संपादकीय विभाग को तानाशाह झा कंट्रोल कर रहे हैं। यहा कोई संपादक है या नहीं यह सवाल संपादकीय विभाग कर्मियों को परेशान करता है।
'झा'ने कुछ दिन पहले कुछ जिला प्रतिनिधियों एवं उपसंपादकों को कोई कारण न रहते हुए काम से हटा दिया।  हर जिला प्रतिनिधियों को केवल सहा हजार रुपए प्रति माह दिए जाते है। लेकिन झा मनमानी करते कई जिला प्रतिनिधियों की पगार रोककर रख रहै है। महाराष्ट्र का मुख्य कार्यालय नागपुर में है, जहाँ से सभी कर्मियों की पगार नियमित रूप से भेजी जाती है।

सब कर्मी परेशान हैं।

दैनिक भास्कर औरंगाबाद संस्करण की बिक्री पहले से ही मर्यादित थी। झा यूनिट हेड बनने के बाद उसमें और कमी आ गई। संस्करण टोटे में है। औरंगाबाद में भास्कर चालू होकर चार साल पूरे हुए हैं। अब्दुल कदीर  संपादकीय विभागप्रमुख के रूप में चार साल से कार्यरत हैं। लेकिन चार साल में भास्कर यहा अपनी किरने बिखेरने में असफल रहा है। प्रबंधन ने झा और कदीर जैसे निकमे लोगों के यहाँ रखने से भास्कर का अस्त दिन ब दिन निश्चित होता जा रहा है।
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झा का पंटर खुद को समझता है मालिक

यूनिट हेड झा को रात में कंपनी देने के लिए कोई सहयोगी न होने से उन्होंने लगभग दस माह पहले  एक  रिश्तेदार  को लाकर कंप्यूटर हेड के रूप में नियुक्त किया है। यह रिश्तेदार की स्थिति ऐसी है कि साइकिल चला नहीं सकता और हाथ में सौंप दिया प्लेन! कंप्यूटर हेड होकर भी उसको  पेज लगाना जानता नहीं है। झा का रिश्तेदार होने से खुद को मालिक समझते हुए ऑफिस में चपराशी, टेलीफोन ऑपरेटर, डीटीपी ऑपरेटर को माँ बहन पर गालिया दी है। एक बार तो उसने शराब के नशे में एक उपसंपादक को व्हीलचेर उठाकर मारी थी। अन्य कर्मियों ने चेअर को पकड़ने से उक्त उपसंपादक बच गया था। झा के आशीर्वाद से साहब खुद को मालिक समझते है।

'छमकछलो' भी रही चर्चा में
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औरंगाबाद भास्कर के लिए शुरुआत से छमकछलो महत्त्वपूर्ण रही हैं। नागपुर कार्यालय ने कुछ माह पहले दो महिलाओं को उनके उल्लेखनीय कार्य के चलते घर का रास्ता दिखाया था। औरंगाबाद संस्करण के समाचार संपादक (स्वयंघोषित संपादक) और यूनिट हेड ने नागपुर कार्यालय से विनती कर दोनों महिलाओं को फिर से काम पर लिया।

केस-1 :
छह माह पहले संपादक अनिल बिहारी श्रीवास्तव के साथ वाद खड़ा करते हुए अपशब्द कहनेवाली महिला उपसंपादक को नागपुर के आदेश से अलविदा किया था लेकिन संपादक श्रीवास्तव का तबादला होते ही उक्त महिला ने ऑफिस के कुछ वरिष्ठों से जुगाड़ किया। इस जुगाड़ के बारे में ऑफिस के सब लोग जानते है। जुगाड़ सेट होते ही उसे लेने के लिए एक मेहनती रिपोर्टर पर झूठे आरोप लगाते हुए निकाल दिया और जुगाड़ छमकछलो उपसंपादक को फिर से एंट्री दी गई।

केस-2
: 'धर्म संस्कृति'को चाहने वाली एक महिला उपसंपादक ने स्वयंघोषित संपादक के कहने पर ऑफिस के 3 उपसंपादकों पर छेडछाड़ एवं मानसिक प्रताड़ना का मामला दर्ज किया था। कुछ भी गलती न होने से तीनों उपसंपादक पीछे हटे नहीं। आखिरकार नागपुर कार्यालय ने मध्यस्थता करते हुए महिला उपसंपादक को घर का रास्ता दिखाया। लेकिन उसके बिना ऑफिस सुना सुना लग रहा था इसलिए स्वयंघोषित संपादक और यूनिट हेड ने नागपुर कार्यालय से विनती कर दूसरी छमकछलो के लिए भी दरवाजे खुले किए।