दिव्य मराठी प्रबंधन से जान को खतरा होने की आशंका।

श्रीमान आयुक्त महोदय
औरंगाबाद, पुलिस कमिशनर, महाराष्ट्र

महोदय,

मैं हेमकांत चौधरी पिता शिवदास चौधरी उम्र ४१ वर्ष, स्थायी पता नागलवाड़ी तालुका चोपड़ा जिल्हा जलगॉव पिन कोड ४२५१०७ में रहता हूं। मैं दिनांक.२०/०४/२०१२ से डीबी कार्प लि. द्वारा औरंगाबाद से प्रकाशित दिव्य मराठी अखबार में बतौर -पेपर एग्जीक्यूटिव पद पर कार्यरत हूँ। सर, भारत सरकार ने प्रिंट मीडिया कर्मचारियों के लिए मजीठिया वेजबोर्ड लागू किया है। अखबार मालिक इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी केस हार चुके हैं, फिर भी आदेश का पालन नहीं कर रहे।इस मामले में मेरे सहित देशभर के हजारों मीडियाकर्मियों ने अवमानना याचिका लगा रखी है।

    सर, मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देने से बचने के लिए सन २०१४ को दिव्य मराठी प्रबन्धन द्वारा पहले से प्रकाशित घोषणा पत्र पर निवासी संपादक दिपक पटवे ,एच.आर डेपोटी मैनेजर जोगिन्दर सिंघ इन्होने मुझसे जबरन साइन करवा लिए थे जिन पर छपा हुआ था कि मैं अपनी वर्तमान सैलरी से संतुष्ट हूँ और मुझे सरकार द्वारा लागू किए गए मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ नहीं चाहिए।इसके बाद मैंने और अन्य कर्मचारियों ने डीबी कॉर्प प्रबन्धन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका (सिविल) क्रमांक १२८/२०१५ फाइल कर दी थी। इसका पता चलते ही कंपनी के अधिकारियों ने केस वापस लेने के लिए मुझ पर दबाव डाला। मेरे मना कर देने पर उन्होंने प्रताड़ना के उद्देश्य से मुझे डेप्यूटेशन पर रांची ट्रांसफर कर दिया। हालांकि इसके खिलाफ मुझे दिनांक २०/०३/२०१५ को औद्योगिक कोर्ट से स्टे मिल गया।

दिनांक ०२/०७/२०१५ को मैं औरंगाबाद से जलगाँव स्थित अपने गाँव चोपड़ा बाइक से छुट्टी पे आया। और ०३/०७/२०१५ को यहाँ नागलवाड़ी से वराड जाने वाली सड़क पर सुबह १० बजे किसी वाहन ने मेरी बाइक को टक्कर मार कर निकल गया। इससे मैं जमीन पर गिर पड़ा और बेहोश हो गया। होश आया तो परिजन मेरे पास खड़े थे, उन्होंने बताया कि मुझे ऑटो रिक्शा ने टक्कर मारी थी। इस दुर्घटना में मेरे दाएँ पैर के घुटने की कटोरी बुरी तरह टूट गई। चूँकि जब एक्सीडेंट हुआ उस वक्त उस सड़क पर बिलकुल भी ट्राफिक नहीं रहता है इसलिए मुझे शक है कि यह एक्सीडेंट दिव्य मराठी प्रबंधन द्वारा करवाया गया है। यही नहीं, मैंने जब एक्सीडेंट की सूचना कंपनी के एचआर विभाग में ०३/०७/२०१५ को दी तो उन्होंने मुझे ईएसआईसी के डॉ. खड़के एक्सीडेंट अस्पताल में इलाज करवाने को कहा। मैं वहाँ भर्ती हो गया। जाँच के बाद पता चला कि मेरे दाएँ घुटने की कटोरी पूरी तरह डैमेज हो गई है। दिनांक १४/०७/२०१५ को मेरा ऑपेरशन डॉ.उल्हास पाटील मेडिकल कॉलेज एंड अस्पताल जलगॉव में हुआ। इस दौरान कंपनी की ओर से ना तो कोई मुझसे मिलने आया और ना ही कोई संपर्क किया गया। जब मेरी हालत सुधरी तो मैंने मदद हेतु कंपनी को ईमेल करने के लिए जैसे ही लैपटॉप पर कंपनी का ईमेल खोला तो पता चला कि उन्होंने मुझे 07 जुलाई को ही मेडिकल बीमे की जानकारी भेज दी थी लेकिन फोन पर इस सम्बन्ध में नहीं बताया था। इस कारण मैं समय पर उक्त बीमा योजना में क्लेम नहीं कर पाया और  बीमित होने के बावजूद मुझे उसका लाभ नहीं मिल सका।

कंपनी प्रबंधन ने ऐसा जानबूझकर किया था ताकि मैं आर्थिक रूप से कमजोर हो जाऊँ और समझौता करके केस वापस ले लूँ। इसके बाद दिनांक ०२/११/२०१५ से ०७/१२/२०१५ तक मुझे ईएसआईसी से बीमा वेतन मिला। लेकिन कम्पनी से कोई मदद नहीं मिली उलटा जलगॉव एचआर विभाग के विजय शिंपी और प्रमोद वाघ इन्होने ईएसआईसी में मेरी झूटी शिकायत कर दी कि मेरा कैरेक्टर और रिकॉर्ड ख़राब है और मैं जानबूझकर ड्यूटी नहीं रहा हूँ इसलिए मेडिकल बोर्ड में मेरी जाँच की जाए। ईएसआईसी ने मुझे औरंगाबाद मेडिकल बोर्ड में तलब किया जहाँ जाँच के बाद कंपनी की शिकायत झूटी निकली और बोर्ड ने मुझे 30 दिन की छुट्टी और मंजूर कर दी। यहाँ असफल होने पर कंपनी ने 2015 के नवम्बर और दिसंबर महीने में जानबूझकर मेरे खाते में एक दिन का वेतन डाल दिया, जिसके कारण मुझे ईएसआईसी से मिल रही मदद भी बंद हो गई। जबकि काम करना तो दूर मेरी हालत कंपनी के आफिस जाने लायक भी नहीं थी। यही नहीं जब मैंने ईएसआईसी में मदद के लिए मेडिकल बोर्ड के फॉर्म में आवेदन किया तो उक्त आवेदन लेने वाले वहां के कर्मचारी कैलाश ने मेरा मूल फॉर्म ही गायब कर दिया। मुझे शक है कि उसने ऐसा डीबी कॉर्प के अधिकारीयों के कहने पर किया है। मैंने इस सम्बन्ध में ईएसआईसी के बेनीफिट डिपार्टमेन्ट के डेपुटी डायरेक्टर श्री.बी.बालकृष्ण सर को भी फोन पर शिकायत की है। उन्होंने मुझसे सभी दस्तावेज मांगे हैं।

महोदय, मैं लम्बे समय से दोस्तों और रिश्तेदारों से उधार लेकर जैसे तैसे अपना इलाज करवाते हुए घर खर्च भी चला रहा हूँ, लेकिन अपने आप को देश का सबसे बड़ा अख़बार बताने वाला और समाजसेवा, समाज में बदलाव की बड़ी-बड़ी बातें करने वाला दिव्य मराठी प्रबंधन मेरी मदद करने की जगह मुझे आर्थिक रूप से कमजोर करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। पिछले दिनों दिव्य मराठी जलगॉव में रिपोर्टर के पद पर कार्यरत हेमंत पाटिल की लाश उन्हीं के घर के पास रेलवे पटरी पर संदेहास्पद परिस्थितियों में पड़ी मिली थी और उक्त घटना को आत्महत्या बताया गया था। जबकि हेमंत बहुत ही हिम्मतवाले और मेहनती व्यक्ति थे। उनका आत्महत्या जैसा कदम उठाना असंभव था। ऐसी अफवाह है कि उनका कंपनी प्रबंधन से महानगर पालिका के बिट से हटाके उन्हें कलेक्टर ऑफिस के बिट दिए जाने के मामले को लेकर विवाद भी चल रह था।
हाल ही में लुधियाना में दैनिक जागरण के कर्मचारी अतुल सक्सेना की लाश फांसी पर लटकी मिली है और उसे भी प्राथमिक तौर पर आत्महत्या बताया जा रहा है जबकि इस कर्मचारी ने अपने संसथान के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका लगा रखी है और कंपनी केस वापस लेने के लिए उसे प्रताड़ित करते हुए जबरदस्त दबाव डाल रही थी। ऐसे में उसकी मौत आत्महत्या है या हत्या कहा नहीं जा सकता।

महोदय, पूरे महाराष्ट्र से एकमात्र मैं ही दिव्य मराठी के खिलाफ खुलकर केस लड़ रहा हूँ और कंपनी के तमाम अनैतिक हथकंडों के बावजूद मैंने याचिका वापस नहीं ली है, इसलिए मुझे भय है कि कंपनी का प्रबंधन  मेरी जान लेने की कोशिश भी कर सकता है। अतः निवेदन है कि यदि मेरी मृत्यु अप्राकृतिक रूप से या दुर्घटना में हो जाए या कोई व्यक्ति किसी प्रकार की शारीरिक हानि पहुंचाए तो उसका जिम्मेदार डीबी कॉर्प के चेअरमन श्री. रमेशचन्द्र अग्रवाल, एम.डी. सुधीर अग्रवाल, सी.. श्री. निशित जैन, निवासी संपादक दिपक पटवे ,एच. आर के सिनियर मैनेजर निशिकांत तायडे, एच.आर डेपोटी मैनेजर अजित पती और एच. आर के को-ऑर्डिनेटर संजय मांजी को माना जाये और उनके खिलाफ तत्संबंधी उचित क़ानूनी कार्रवाई की जाए।

धन्यवाद
 
आपका
हेमकांत शि.चौधरी,डी.बी. कॉर्प. लि. (दैनिक दिव्य मराठी )
पद- -पेपर एग्जीक्यूटिव, औरंगाबाद.मोबाइल नंबर ७०३०३७७७७०
 
स्थायी पता : नागलवाड़ी,तालुका चोपड़ा,
जिल्हा जलगॉव ४२५१०७,महाराष्ट्र
 
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(श्री.बी. बालकृष्णन ईएसआयसी डेपोटी डायरेक्टर बिनिफिट डिपार्टमेंट)b.balkrishnan@esic.in
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